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सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया, माना सूचना के अधिकार का उल्लंघन

 इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। कोर्ट ने यह फैसला उस याचिका पर सुनाया है जिसमें इस स्कीम को अनुचित और जनता के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करने वाला बताया गया था। 


Constitution


पांच जजों की बेंच, जिसकी अध्यक्षता चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ कर रहे थे, ने माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दान देने वालों की जानकारी छिपाने से मतदाताओं का सूचना का अधिकार छीना जाता है। इससे न सिर्फ राजनीतिक पार्टियों में पारदर्शिता की कमी रहती है बल्कि यह किसी अज्ञात स्रोत से असीमित धन प्राप्त करने का रास्ता भी खोल देता है।



कोर्ट ने फैसले में कहा, "इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम कानून के बनाए गए ढांचे का उल्लंघन करती है और इसकी वजह से राजनीतिक प्रक्रिया में धनबल का प्रभाव बढ़ता है। साथ ही, यह मतदाताओं को सूचित निर्णय लेने के अधिकार का हनन करती है।"





इस फैसले से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, जबकि सत्तारूढ़ दल ने फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला चुनाव वित्त पोषण व्यवस्था में व्यापक बदलाव ला सकता है।


ये हैं फैसले के मुख्य बिंदु:


  1. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को गैर-कानूनी और असंवैधानिक घोषित किया गया।
  2. यह मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
  3. राजनीतिक दलों में पारदर्शिता की कमी को बढ़ावा देती है।
  4. धनबल के प्रभाव को बढ़ावा देती है।
  5. चुनाव वित्त पोषण व्यवस्था में व्यापक बदलाव ला सकती है।


यह फैसला भारतीय लोकतंत्र के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है और भविष्य में राजनीतिक वित्त पोषण को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने का रास्ता खोल सकता है।


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